मानवीय युद्धों में जब भी राष्ट्र हितों का संदर्भ आता है, तो उपनिवेश शासन व्यवस्था के साम्राज्य द्वारा दुनियाभर पर शासन कर अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति करके औद्योगिक क्रांति को अंजाम दिया गया। किंतु 19वीं शताब्दी जहां मशीनी और मानवीय जरूरतों की अविष्कारक शताब्दी रही, वही बीसवीं शताब्दी में राष्ट्रीय हितों के संदर्भ में भौगोलिक संरचना एवं राष्ट्रीय हितों के रूप में राष्ट्र सम्मान एक प्रमुख मुद्दा बन गया। क्योंकि 19वीं शताब्दी में पैदा हुई वैचारिक विचारधारा आधारित राजनीतिक संस्थाओं ने बीसवीं शताब्दी में स्वयं को अलग-अलग रूप में स्थापित करने का प्रयास किया। जिसका प्रथम प्रयास रूस में लेनिन के द्वारा मार्क्सवाद के बदले हुई (साम्यवाद का रूप) विचारधारा के रूप में दिखाई पड़ता है। साथ ही बीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक में विचारधाराओं की कुंठा में प्रथम विश्वयुद्ध की उत्पत्ति हुई, जिसने ना केवल तत्कालीन परिस्थितियों की शासनकाल शक्तिशाली राष्ट्र/राज्य की सीमाओं को परिवर्तित किया। बल्कि हारे हुए रास्तों को उनके आत्मसम्मान और क्षतिपूर्ति से प्रताड़ित किया गया। जिसके कारण द्वितीय विश्व युद्ध उत्पन्न हुआ, द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति दुनिया भर में विचारधाराओं और शोषणकारी प्रवृत्तियों की समाप्ति का दौर था। किंतु संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ ने प्रतिस्पर्धा की नई प्रवृत्ति को शीत युद्ध के रूप में शुरू कर दिया। जिसके कारण पूरी दुनिया में मानवीय नैतिकता के स्थान पर हथियारों की दौड़ में शामिल हो गई। हालांकि द्वितीय विश्व युद्ध में जापान पर हुए परमाणु आक्रमण के बाद पूरी दुनिया में निशस्त्रीकरण की एक प्रक्रिया शुरू हुई। जिसका मुख्य उद्देश्य यह था कि दुनिया में मानव जाति के बीच शांति और सद्भावना पैदा हो, किंतु शीत युद्ध की कैंपेनिंग में अमेरिका और सोवियत संघ ने स्वयं को संरक्षित करते हुए अल्पविकसित व विकासशील देशों में निशस्त्रीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने का कार्य किया। जिसके कारण यूक्रेन जैसे देश जो परमाणु शक्ति में तत्कालीन परिस्थितियों में तीसरे स्थान पर थे। उन्होंने अपनी सैन्य शक्ति के साथ-साथ अपने हथियारों के जखीरे में भारी कटौती की और शांति और सद्भाव के रास्ते पर शासन सत्ता और जन सामान्य के बीच राजनीति का नया दौर शुरू किया। वही दूसरी ओर 1990 आते आते सोवियत संघ भ्रष्टाचार और परिवारवाद की श्रेणी में लेट हो चुका था। जिसके कारण सोवियत संघ का भौगोलिक विघटन हुआ और एक बड़ा भूभाग सोवियत संघ से अलग होकर छोटे-छोटे देशों में विभाजित हो गया। जिसके परिणाम स्वरूप वैश्विक शक्ति एक ध्रुवीय व्यवस्था के रूप में यूएसए की तरफ झुक गई।
21 वी शताब्दी के सूचना प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी दौर में जहां रूस ने स्वयं को आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक आधारों पर स्थापित किया है, वही रूस ने हथियारों की एक बड़ी कॉर्पोरेशन या कंपनियां सैक्टर को स्थापित कर अल्प विकसित व विकासशील देशों में हथियारों निर्यात के लिए बाजार की तलाश कर वहां हथियारों की डिप्लोमेसी एवं हथियारों के निर्यात से आर्थिक उन्नति प्राप्त की। जिसका मुख्य कारण रही आतंकवादी गतिविधियों, 21 वी शताब्दी में मध्य एशिया के चरमपंथी संघर्ष की समाप्ति के बाद दुनिया भर में मुस्लिम राष्ट्र संस्कृति के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव आया है क्योंकि 21 वी शताब्दी के शुरुआत में ही तालिबानी संगठन के प्रमुख ओसामा बिन लादेन के द्वारा अमेरिका पर अमानवीय आत्मघाती आक्रमण किए जाने के बाद संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के द्वारा मध्य एशिया में चर्मपंथी आतंकी संगठनों को उजाड़ दिया गया। जिसके कारण मध्य एशिया में शांति और सद्भाव के साथ राजनीतिक समाजिक, आर्थिक जनजीवन के साथ कूटनीति हुईं और अफगानिस्तान के रूप में पैदा हो रही हैं, किंतु रूस जैसे देशों में जहां हथियारों एवं विचारधाराओं की कूटनीति देश की राष्ट्र शक्ति की मुख्य प्रवृत्ति हैं, उसे बनाए रखने के लिए वर्तमान में रूस द्वारा यूक्रेन पर अनर्गल प्रवृत्ति व राजनीतिक आपत्ति के आरोप लगाकर यूक्रेन की अंतर्राष्ट्रीय सीमा को अवैध रूप से सैन्य बल का प्रवेश कराकर यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया गया है। रूस ने यूक्रेन के क्रीमिया क्षेत्र को भी कुछ वर्ष पूर्व ही सैन्य बल पर हथिया लिया गया था। जिसके कारण रूस ने कुछ स्थानीय चरमपंथी संगठनों के आधार पर एवं यूक्रेन में राजनीतिक अराजकता का हवाला देते हुए आक्रमण कर अंतरराष्ट्रीय संप्रभुता नियम की अवहेलना की है। जिसके परिणाम स्वरूप ना केवल मत्स्य नियम के आधार पर बड़े शक्तिशाली राज्य भविष्य में छोटे राज्यों की संप्रभुता अवहेलना कर आक्रमण से हथिया सकते हैं। जिसका पृथ्वी पर मानव प्रकृति संतुलन को भी हानि पहुंचा सकते हैं। क्योंकि अनेक परमाणु ऊर्जा के संदर्भ के वैज्ञानिकों ने यह तथ्यात्मक रूप से प्रति वेदना व्यक्त की है कि पृथ्वी जैसे ग्रह को 7 बार नष्ट करने की क्षमता के परमाणु हथियार पृथ्वी के विभिन्न देशों के पास हैं। जिसके कारण मानवीय सभ्यता पर संकट आ सकता है। इस युद्ध का दूसरा पक्ष यह भी हो सकता है कि रूस अपने हथियारों की मार्केट को बढ़ाने एवं दुनिया भर में हथियारों की दौड़ को एक बार फिर पैदा कर छोटे-छोटे अल्प विकसित व विकासशील देशों में संघर्ष पैदा कर हथियार की आपूर्ति कर, अपनी आर्थिक मजबूती प्राप्त कर सके और 1990 के बाद सोवियत संघ के विघटन के बाद दुनिया में पैदा हुई एक ध्रुवीय व्यवस्था एवं 21 वी शताब्दी में भारत, चीन सहित अनेक राज्यों के शक्तिशाली होने के बाद पैदा हुई बहुध्रुवीय व्यवस्था में स्वयं को अग्रिम रूप में स्थापित कर पृथ्वी पर शक्तिशाली देशों की श्रेणी में स्वयं की राष्ट्रहित आकंक्षा को पूरा कर सकें।
डॉ. निशु कुमार
सहायक आचार्य
राजनीति विज्ञान विभाग
चमन लाल महाविद्यालय
लंढौरा रुड़की
ईश्वरचंद ब्यूरो प्रमुख